Muslim Students' Organization of India
Muslim Students' Organization of India MSO
Type Student organization
Founded 1977
Headquarters New Delhi, India
Motto
Non-profit
Website http://www.msoofindia.co.in
Type | Student organization |
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Founded | 1977 |
Headquarters | New Delhi, India |
Motto | Non-profit |
Website | http://www.msoofindia.co.in |
President and Ideology
Syed Muhammad Quadri is the current National President of the organization.”Kunu Ma’sassadeqeen” And Be with the Truthful (Quran)is the slogan of the organization. MSO of India follows traditional version of Islam i.e Sunni Sufi ideology on the basis of Quran and Sunnah. MSO is developing overall character of youths by providing them a good Islamic atmosphere in educational institutes specially in the colleges and Universities.
Patrons
Syed Muhammad Ameen Mian Qaudri of Qadri Barkatiyya Sufi order ,Dr.Liaqat Hussain Moini of History Deptt. AMU of Ajmer Dargah Saand Kanthapuram A. P. Aboobacker Musalyar of Markazu Saqafathi Sunniya Sunni Centre, Kerala are the patrons of MSO.[1] MSO patrons have been regularly ranked amongst 500 Most influential Muslims of the World by Jordan based The Royal Islamic Strategic Studies Centre.
Aims and Objective
- To do Dawah work among the youths
- Spread the message of peaceful Islam among the youth of the country
- To provide the youth with a good, Islamic, educational atmosphere
- To spread education among the various sections of the society with the active help of youths
- To prepare students as active contributors to the community and country
- To build the society based on the Islamic morality and spirituality
AS SALAM U ALAYUKUM,Bhaijan mai bhi student hoon,mso me mere laik koi khidmat ho to guzarish hai ki hukum karen.Mai SULTANPUR U.P.se hoon.
ReplyDeleteJAZAKALLAAH
डॉक्टर ज़ाकिर नाइक को किस वजह से निशाना बनाया जा रहा है ? ये सभी जानते हैं कि उनका 'जुर्म' केवल "इस्लाम का प्रचार करना" है। इसके इलावा और वजह है किसी के पास? अगर ज़ाकिर नाइक को "इस्लाम का प्रचार करने" के 'जुर्म' में निशाना बनाया जा सकता है तो आप इस्लाम की खातिर उनका साथ क्यों नहीं दे सकते ?
ReplyDeleteअगर ज़ाकिर नायक का साथ देने में आप का मसलक आड़े आ रहा है तो समझ लीजिए कि मसलक ने आप के इस्लाम को क़ैद कर लिया है ! ताज्जुब की बात है कि जो व्यक्त हमेशा क़ुरान व हदीस की की रौशनी में, तर्क व तथ्य और संदर्भ के साथ बात करता था, जो मात्र इस्लाम का प्रचार करता था, जिसने अपने आपको कभी किसी मसलक से नही जोड़ा, उस शख्स का विरोध मसलक के आधार पर किया जा रहा है !!! भला ये कैसी कुंठा है ? मसलक को मज़हब बना लेने से ही ये सोच जन्म लेती है कि मैं सही बाकी सब गलत, मैं बरहक़ और जन्नती बाक़ी सब बातिल और जहन्नमी !
यही सोच एक मुसलमान को दुसरे मुसलमान की परेशानी पर खुश होने का कारण बनती है जबकि इस्लाम तो किसी गैर मुस्लिम या यूँ कहें कि किसी भी इंसान की परेशानी पर ख़ुशी मनाने की इजाज़त नहीं देता। सभी मसलक और फ़िरक़ों से मेरा एक सीधा और सादा सा सवाल है। नबी (s.) ने एक हदीस में फ़रमाया कि क़यामत के क़रीब आने पर फ़ह्हाशी और बेहयाई बढ़ जाएगी। अब आप ही बताइए कि इस हदीस में फ़ह्हाशी और बेहयाई के खिलाफ चेतावनी है या प्रेरणा (तरग़ीब) ? इसी तरह 73 फ़िरक़ों वाली हदीस फ़िरक़ा बाज़ी और मसलक परस्ती के खिलाफ एक चेतावनी है या प्रेरणा ? अगर चेतावनी है तो फिर मसलक और फ़िरक़ों के प्रचारक इस हदीस को अपने हक़ में दलील के तौर पर किस आधार पर इस्तेमाल करते हैं ? जबकि इसी हदीस में ही आगे बता दिया गया है खुद को किसी मसलक या फ़िर्क़े से न जोड़ कर "मेरे और सहाबा (r.) के रास्ते पर चलने वाले" या "सुन्नत वलजमात" अर्थात इज्तेमाइयत के रास्ते पर चलने वाले लोग ही हक़ पर होंगे। तफर्रका बाज़ी के सिलसिले में सहाबा (r.) का रास्ता या इज्तेमाइयत का रास्ता क्या था वो हर कोई जानता है। लाख इख्तेलाफ़ात के बावजूद सहाबा (r.) ने खुद को और दुसरे साथियों को "मुसलमान" और "मोमिन" के इलावा कोई और नाम नहीं दिया, एक दुसरे को फ़िरक़ों, मसलकों और गिरोहों में नहीं बांटा और न ही किसी को "मुसलमान" के इलावा किसी और टर्म से कभी पुकारा। जबकि ऐसा भी नहीं है कि उनमें इख़्तिलाफ़ात और नजरियाती विरोधाभास नहीं थे। वैसे ज़ाकिर नायक की आईआरएफ़ पर बैन लगने से खुश होने वाले फ़्रिक़ा परस्त सोरमाओं और मसलकी प्रचारकों से इस्लाम के प्रचार की उम्मीद करना या इत्तेहाद की अपील करना सरासर बेवक़ूफी और हिमाक़त है, फिर भी मुझ जैसे कुछ लोग ये बेवक़ूफ़ी बार बार करते हैं ।