मीडिया में प्रसारित की जा रही खबरों में काश्मीर के रॉक बैंड के माध्यम से एक बार फिर इस्लाम पर निशाना लगाया जारहा है और हमेशा की तरह से यह कहने की कोशिश की जारही है की इस्लाम एक शिद्दत पसंद मज़हब है जो औरतो पर ज़ुल्म करता है
मीडिया को कितनी फ़िक्र है काश्मीर में लड़किओं के गाने बाजे की मगर जब वहां उन्ही लड़किओं के साथ ज़ुल्म किया जाता है तब वहां कोई मीडिया वाला दिखाई नहीं देता!
वोह लड़किया गाना गायें या न गायें यह उनकी मर्ज़ी मगर इससे इन मीडिया वालों को एक बार फिर मसला और मसाला मिल गया ! इसमें एक खास बात यह है की कोई भी सोसाइटी अपने घर की औरतों के लिए दायरे तय करती है मगर यह मीडिया वाले हर लड़की को सड़क पर नाचते हुए कम कपड़ों में देखना चाहते हैं और फिर इसको कहेंगे असली आजादी उसी तरह जिस तरह जैसे पश्चिम गन्दी सभ्यता !
इन्हें न किसी के मज़हब या कल्चर से सरोकार है न किसी तरह के मोरल सोशल वैल्यूज से!!!
सबसे आसान है हर चीज़ को इस्लाम के माथे मढ़ के बदनाम कर ते रहो कोई पूछने वाला नहीं !!
यहा यह बताना आवश्यक है की इस्लामिक कानून में औरतो ही नहीं बल्कि मर्दों पर भी गाना गाने व सुनने की पाबन्दी है
मीडिया धर्म गुरूओ के बयान को तोर मरोढ़ के पेश करने से बाज़ आये
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